दुनिया में सबसे ज्यादा दी जानेवाली चीज यदि कोई है तो वो है सलाह और दुनिया में सबसे कम ली जानेवाली चीज भी सलाह है। Mystic Vision YouTube Channel के माध्यम से मेरा मकसद आपको कोई सलाह देना नहीं है । कोई ज्ञान बांटना नहीं है । इसके लिए तो गूगल गुरु ही काफी है । गुरुकृपा से ध्यान और प्रेम के माध्यम से जो मेरा अनुभव है उसको आपके साथ बांटने का यह एक छोटा सा प्रयास है। विद्यार्थी और शिष्य यह दोनों शब्द ऐसे तो समानार्थी लगते हैं मगर हकीकत में है नहीं ।
विद्यार्थी मेरी नजर में वह है जो अपने आपको ओर ज्ञान से भरना चाहता है । सूत्रों को कंठस्थ करना चाहे । अपनी स्मृतियों को और प्रगाढ़ करना चाहे । विद्यार्थी होने की घोषणा स्वयं को और जानकारी से भरने की है । विद्यार्थी संग्राहक है । वह ज्ञान इकट्ठा करता है । जबकि शिष्यत्व यह स्वीकार करने की घोषणा है कि मैं अज्ञानी हूं । शिष्य वह है जो पूर्णत: शून्य होने को राजी हो । शिष्य होना महाक्रांति है । ‘मैं समर्पित होने को राजी हूं’ शिष्य होने की पहली शर्त है। शिष्य बनने का अर्थ है यह स्वीकार कर लेना कि मेरा सारा अतीत व्यर्थ था । मेरी सारी भूतकाल की स्मृतियां और भविष्य की कल्पनाएं मेरे मन की ही प्रक्षेपण थे अर्थात प्रोजेक्शन थे । शिष्य आत्मार्थि है। सत्यार्थी है ।
वह चाहता है कि उसकी आत्मा विकसित हो जाए । शिष्य का सारा जोर स्वयं को भीतर रूपांतरण पर होता है । विद्यार्थी का सारा जोर बाहरी रूपांतरण अर्थात पर्सनैलिटी डेवलपमेंट पर होता है । विद्यार्थी वह है जो कुछ बनने आया है । शिष्य वह है जो स्वयं को मिटाने की प्रबल चाह के साथ आया है । विद्यार्थी लेने की चाहत के साथ आया है और शिष्य सब कुछ विसर्जन की भावना से आता है । यहां तक कि वह स्वयं को ही दांव पर लगाने को तैयार है ।
दो प्यारे शब्द हैं जो विद्यार्थी और शिष्य को पूर्णत: विभाजित कर देते हैं । बीइंग और नॉलेज । विद्यार्थी ज्ञान के इकट्ठा करता है जबकि शिष्य अपनी पूरी ऊर्जा आत्मा को विकसित करने में लगाता है । शिष्य वह जो गुरु के प्रति पूर्ण समर्पित हो जाए उसका समर्पण बेशर्त प्रेम है ।
उसकी जफा जफा नहीं
उसको ना तू जफा समझ ।
हुस्ने जहां फरेब की
यह भी कोई अदा समझ।
शिष्य यानी वह जो मिटने को तैयार है और जो एक बार पूर्ण ह्रदय से कह पाए जो तेरी मर्जी वह मेरी मर्जी उसके जीवन से दुख ऐसे विदा हो जाता है जैसे सूरज के उगने पर अंधेरा कहीं दिखाई नहीं पड़ता ।
मेरी मर्जी मैं चिंता है,भय है । उसकी मर्जी में शांति है आनंद है।
‘Sakshi’ Narendra@mysticvision.net
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